Argala Stotram अर्गला स्तोत्र |Durga Saptashati Argala Stotram – Sanskrit ,Marathi ,English & Hindi Lyrics with free pdf download Video we will see in this blog argala stotram benefits for marriage,argala stotram telugu pdf,argala stotram in hindi pdf,full argala stotram pdf in hindi,argala stotram lyrics in english,argala stotram benefits in hindi,argala stotram telugu,argala stotram pdf,argala stotram in hindi,argala stotram lyrics,full argala stotram pdf in hindi,దేవీ మాహాత్మ్యం అర్గలా స్తోత్రం argala strotram free pdf download in telgu lyrics, argala strotram lyrics in marathi and pdf free download .
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Marathi (मराठी ) Argala Stotram अर्गला स्तोत्र | Marathi argala strotram lyrics & Free PDF Download
अस्य श्री अर्गला स्तोत्र मंत्रस्य विष्णुः ऋषि:। अनुष्टुप्छन्द:। श्री महालक्षीर्देवता। मंत्रोदिता देव्योबीजं।
नवार्णो मंत्र शक्तिः। श्री सप्तशती मंत्रस्तत्वं श्री जगदन्दा प्रीत्यर्थे सप्तशती पठां गत्वेन जपे विनियोग:।।
ध्यानं
ॐ बन्धूक कुसुमाभासां पञ्चमुण्डाधिवासिनीं।
स्फुरच्चन्द्रकलारत्न मुकुटां मुण्डमालिनीं।।
त्रिनेत्रां रक्त वसनां पीनोन्नत घटस्तनीं।
पुस्तकं चाक्षमालां च वरं चाभयकं क्रमात्।।
दधतीं संस्मरेन्नित्यमुत्तराम्नायमानितां।
अथवा
या चण्डी मधुकैटभादि दैत्यदलनी या माहिषोन्मूलिनी,
या धूम्रेक्षन चण्डमुण्डमथनी या रक्त बीजाशनी।
शक्तिः शुम्भनिशुम्भदैत्यदलनी या सिद्धि दात्री परा,
सा देवी नव कोटि मूर्ति सहिता मां पातु विश्वेश्वरी।।
ॐ नमश्चण्डिकायै
मार्कण्डेय उवाच
ॐ जयत्वं देवि चामुण्डे जय भूतापहारिणि।
जय सर्व गते देवि काल रात्रि नमोस्तुते।।1।।
मधुकैठभविद्रावि विधात्रु वरदे नमः।
ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।।2।।
दुर्गा शिवा क्षमा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।3।।
महिषासुर निर्नाशि भक्तानां सुखदे नमः।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।4।।
धूम्रनेत्र वधे देवि धर्म कामार्थ दायिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।5।।
रक्त बीज वधे देवि चण्ड मुण्ड विनाशिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।6।।
निशुम्भशुम्भ निर्नाशि त्रैलोक्य शुभदे नमः
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।7।।
वन्दि ताङ्घ्रियुगे देवि सर्वसौभाग्य दायिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।8।।
अचिन्त्य रूप चरिते सर्व शतृ विनाशिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।9।।
नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चापर्णे दुरितापहे।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।10।।
स्तुवद्भ्योभक्तिपूर्वं त्वां चण्डिके व्याधि नाशिनि
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।11।।
चण्डिके सततं युद्धे जयन्ती पापनाशिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।12।।
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि देवी परं सुखं।
रूपं धेहि जयं देहि यशो धेहि द्विषो जहि।।13।।
विधेहि देवि कल्याणं विधेहि विपुलां श्रियं।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।14।।
विधेहि द्विषतां नाशं विधेहि बलमुच्चकैः।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।15।।
सुरासुरशिरो रत्न निघृष्टचरणेम्बिके।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।16।।
विध्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तञ्च मां कुरु।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।17।।
देवि प्रचण्ड दोर्दण्ड दैत्य दर्प निषूदिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।18।।
प्रचण्ड दैत्यदर्पघ्ने चण्डिके प्रणतायमे।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।19।।
चतुर्भुजे चतुर्वक्त्र संस्तुते परमेश्वरि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।20।।
कृष्णेन संस्तुते देवि शश्वद्भक्त्या सदाम्बिके।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।21।।
हिमाचलसुतानाथसंस्तुते परमेश्वरि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।22।।
इन्द्राणी पतिसद्भाव पूजिते परमेश्वरि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।23।।
देवि भक्तजनोद्दाम दत्तानन्दोदयेम्बिके।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।24।।
भार्यां मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीं।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।25।।
तारिणीं दुर्ग संसार सागर स्याचलोद्बवे।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।26।।
इदंस्तोत्रं पठित्वा तु महास्तोत्रं पठेन्नरः।
सप्तशतीं समाराध्य वरमाप्नोति दुर्लभं।।27।।
।।इति श्री अर्गला स्तोत्रं समाप्तम्।।
Sanskrit संस्कृत Argala Stotram अर्गला स्तोत्र | Sanskrit Argala strotram lyrics & Free PDF download
॥ अथार्गलास्तोत्रम् ॥
ॐ अस्य श्रीअर्गलास्तोत्रमन्त्रस्य विष्णुर्ऋषिः,अनुष्टुप् छन्दः,
श्रीमहालक्ष्मीर्देवता, श्रीजगदम्बाप्रीतयेसप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः॥
ॐ नमश्चण्डिकायै॥
मार्कण्डेय उवाच
ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥1॥
जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते॥2॥
मधुकैटभविद्राविविधातृवरदे नमः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥3॥
महिषासुरनिर्णाशि भक्तानां सुखदे नमः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥4॥
रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्डविनाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥5॥
शुम्भस्यैव निशुम्भस्य धूम्राक्षस्य च मर्दिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥6॥
वन्दिताङ्घ्रियुगे देवि सर्वसौभाग्यदायिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥7॥
अचिन्त्यरुपचरिते सर्वशत्रुविनाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥8॥
नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥9॥
स्तुवद्भ्यो भक्तिपूर्वं त्वां चण्डिके व्याधिनाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥10॥
चण्डिके सततं ये त्वामर्चयन्तीह भक्तितः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥11॥
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥12॥
विधेहि द्विषतां नाशं विधेहि बलमुच्चकैः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥13॥
विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥14॥
सुरासुरशिरोरत्ननिघृष्टचरणेऽम्बिके।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥15॥
विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तं जनं कुरु।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥16॥
प्रचण्डदैत्यदर्पघ्ने चण्डिके प्रणताय मे।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥17॥
चतुर्भुजे चतुर्वक्त्रसंस्तुते परमेश्वरि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥18॥
कृष्णेन संस्तुते देवि शश्वद्भक्त्या सदाम्बिके।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥19॥
हिमाचलसुतानाथसंस्तुते परमेश्वरि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥20॥
इन्द्राणीपतिसद्भावपूजिते परमेश्वरि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥21॥
देवि प्रचण्डदोर्दण्डदैत्यदर्पविनाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥22॥
देवि भक्तजनोद्दामदत्तानन्दोदयेऽम्बिके।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥23॥
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥24॥
इदं स्तोत्रं पठित्वा तु महास्तोत्रं पठेन्नरः।
स तु सप्तशतीसंख्यावरमाप्नोति सम्पदाम्॥25॥
॥ इति देव्या अर्गलास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
हिन्दी (HINDI) Argala Stotram अर्गला स्तोत्र |full argala stotram pdf in hindi
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अथ अर्गला स्तोत्र
ॐ इस श्री अर्गला स्तोत्र मन्त्र के विष्णु ऋषि हैं, अनुष्टुप् छन्द है, श्री महालक्ष्मी देवता हैं, श्री जगदम्बा की प्रसन्नता के लिये सप्तश्लोकी के पाठ में इसका विनियोग किया जाता है।
ॐ चण्डिकादेवी को नमस्कार है।
मार्कण्डेयजी कहते हैं – जयन्ती, मङ्गला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा और
स्वधा, इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके! तुम्हें नमस्कार हो देवि चामुण्डे! तुम्हारी जय हो।
सम्पूर्ण प्राणियों की पीड़ा हरने वाली देवि! तुम्हारी जय हो। सब में व्याप्त रहने
वाली देवि! तुम्हारी जय हो। कालरात्रि! तुम्हें नमस्कार हो ॥1-2॥
मधु और कैटभ को मारने वाली तथा ब्रह्माजी को वरदान देने वाली देवि! तुम्हें नमस्कार
है। तुम मुझे रूप (आत्मस्वरूप का ज्ञान) दो, जय (मोह पर विजय) दो, यश
(मोह-विजय तथा ज्ञान-प्राप्ति रूप यश) दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ॥3॥
महिषासुर का नाश करने वाली तथा भक्तों को सुख देने वाली देवि! तुम्हें नमस्कार है।
तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ॥4॥
रक्तबीज का वध और चण्ड-मुण्ड का विनाश करने वाली देवि! तुम रूप दो,
जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ॥5॥
शुम्भ और निशुम्भ तथा धूम्रलोचन का मर्दन करने वाली देवि! तुम रूप दो,
जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ॥6॥
सबके द्वारा वन्दित युगल चरणों वाली तथा सम्पूर्ण सौभाग्य प्रदान करने वाली देवि! तुम
रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो। ॥7॥
देवि! तुम्हारे रूप और चरित्र अचिन्त्य हैं। तुम समस्त शत्रुओं का नाश करने वाली हो।
रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ॥8॥
पापों को दूर करने वाली चण्डिके! जो भक्तिपूर्वक तुम्हारे चरणों में सर्वदा मस्तक झुकाते है,
उन्हें रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ॥9॥
रोगों का नाश करने वाली चण्डिके! जो भक्तिपूर्वक तुम्हारी स्तुति करते हैं, उन्हें रूप
दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ॥10॥
चण्डिके! इस संसार में जो भक्तिपूर्वक तुम्हारी पूजा करते हैं, उन्हें रूप दो,
जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ॥11॥
मुझे सौभाग्य और आरोग्य दो। परम सुख दो, रूप दो, जय
दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ॥12॥
जो मुझसे द्वेष रखते हों, उनका नाश करो और मेरे बल की वृद्धि करो।
रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ॥13॥
देवि! मेरा कल्याण करो। मुझे उत्तम सम्पत्ति प्रदान करो। रूप दो, जय
दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ॥14॥
अम्बिके! देवता और असुर दोनों ही अपने माथे के मुकुट की मणियों को तुम्हारे चरणों
पर घिसते हैं। तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ॥15॥
तुम अपने भक्तजन को विद्वान, यशस्वी और लक्ष्मीवान् बनाओ तथा रूप दो,
जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ॥16॥
प्रचण्ड दैत्यों के दर्प का दलन करने वाली चण्डिके! मुझ शरणागत को रूप
दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ॥17॥
चतुर्मुख ब्रह्माजी के द्वारा प्रशन्सित चार भुजाधारिणी परमेश्वरि! तुम रूप दो, जय
दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ॥18॥
देवि अम्बिके! भगवान् विष्णु नित्य-निरन्तर भक्तिपूर्वक तुम्हारी स्तुति करते रहते हैं। तुम रूप
दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ॥19॥
हिमालय – कन्या पार्वती के पति महादेवजी के द्वारा प्रशन्सित होने वाली परमेश्वरि! तुम
रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ॥20॥
शचीपति इन्द्र के द्वारा सद्भाव से पूजित होने वाली परमेश्वरि! तुम रूप दो,
जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ॥21॥
प्रचण्ड भुजदण्डों वाले दैत्यों का घमण्ड चूर करने वाली देवि! तुम रूप दो,
जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ॥22॥
देवि अम्बिके! तुम अपने भक्तजनों को सदा असीम आनन्द प्रदान करती रहती हो। मुझे
रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ॥23॥
मन की इच्छा के अनुसार चलने वाली मनोहर पत्नी प्रदान करो, जो दुर्गम
संसार-सागर से तारने वाली तथा उत्तम कुल में उत्पन्न हुयी हो ॥24॥
जो मनुष्य इस स्तोत्र का पाठ करके सप्तशती रूपी महास्तोत्र का पाठ करता
है, वह सप्तशती की जप-सँख्या से मिलने वाले श्रेष्ठ फल को प्राप्त होता है।
साथ ही वह प्रचुर सम्पत्ति भी प्राप्त कर लेता है ॥25॥
॥ अर्गला स्तोत्र सम्पूर्ण ॥
English (इंग्लिश ) Argala Stotram अर्गला स्तोत्र | english Argala strotram lyrics & Free PDF download
॥ Athargalastotram ॥
Om Asya Shri Argalastotramantrasya Vishnurrishih,Anushtup Chhandah,
Shri Mahalakshmirdevata, Shri JagadambapritayeSaptashatipathangatvena Jape Viniyogah॥
Om Namashchandikayai॥
Markandeya Uvacha
Om Jayanti Mangala Kali Bhadrakali Kapalini।
Durga Kshama Shiva Dhatri Swaha Swadha Namoastu Te॥1॥
Jai Tvam Devi Chamunde Jai Bhutartiharini।
Jai Sarvagate Devi Kalaratri Namoastu Te॥2॥
Madhukaitabhavidravividhatrivarade Namah।
Rupam Dehi Jayam Dehi Yasho Dehi Dvisho Jahi॥3॥
Mahishasuranirnashi Bhaktanam Sukhade Namah।
Rupam Dehi Jayam Dehi Yasho Dehi Dvisho Jahi॥4॥
Raktabijavadhe Devi Chandamundavinashini।
Rupam Dehi Jayam Dehi Yasho Dehi Dvisho Jahi॥5॥
Shumbhasyaiva Nishumbhasya Dhumrakshasya Cha Mardini।
Rupam Dehi Jayam Dehi Yasho Dehi Dvisho Jahi॥6॥
Vanditanghriyuge Devi Sarvasaubhagyadayini।
Rupam Dehi Jayam Dehi Yasho Dehi Dvisho Jahi॥7॥
Achintyarupacharite Sarvashatruvinashini।
Rupam Dehi Jayam Dehi Yasho Dehi Dvisho Jahi॥8॥
Natebhyah Sarvada Bhaktya Chandike Duritapahe।
Rupam Dehi Jayam Dehi Yasho Dehi Dvisho Jahi॥9॥
Stuvadbhyo Bhaktipurvam Tvam Chandike Vyadhinashini।
Rupam Dehi Jayam Dehi Yasho Dehi Dvisho Jahi॥10॥
Chandike Satatam Ye Tvamarchayantiha Bhaktitah।
Rupam Dehi Jayam Dehi Yasho Dehi Dvisho Jahi॥11॥
Dehi Saubhagyamarogyam Dehi Me Paramam Sukham।
Rupam Dehi Jayam Dehi Yasho Dehi Dvisho Jahi॥12॥
Vidhehi Dvishatam Nasham Vidhehi Balamuchchakaih।
Rupam Dehi Jayam Dehi Yasho Dehi Dvisho Jahi॥13॥
Vidhehi Devi Kalyanam Vidhehi Paramam Shriyam।
Rupam Dehi Jayam Dehi Yasho Dehi Dvisho Jahi॥14॥
Surasurashiroratnanighrishtacharaneambike।
Rupam Dehi Jayam Dehi Yasho Dehi Dvisho Jahi॥15॥
Vidyavantam Yashasvantam Lakshmivantam Janam Kuru।
Rupam Dehi Jayam Dehi Yasho Dehi Dvisho Jahi॥16॥
Prachandadaityadarpaghne Chandike Pranataya Me।
Rupam Dehi Jayam Dehi Yasho Dehi Dvisho Jahi॥17॥
Chaturbhuje Chaturvaktrasanstute Parameshwari।
Rupam Dehi Jayam Dehi Yasho Dehi Dvisho Jahi॥18॥
Krishnena Sanstute Devi Shashvadbhaktya Sadambike।
Rupam Dehi Jayam Dehi Yasho Dehi Dvisho Jahi॥19॥
Himachalasutanathasanstute Parameshwari।
Rupam Dehi Jayam Dehi Yasho Dehi Dvisho Jahi॥20॥
Indranipatisadbhavapujite Parameshwari।
Rupam Dehi Jayam Dehi Yasho Dehi Dvisho Jahi॥21॥
Devi Prachandadordandadaityadarpavinashini।
Rupam Dehi Jayam Dehi Yasho Dehi Dvisho Jahi॥22॥
Devi Bhaktajanoddamadattanandodayeambike।
Rupam Dehi Jayam Dehi Yasho Dehi Dvisho Jahi॥23॥
Patnim Manoramam Dehi Manovrittanusarinim।
Tarinim Durgasansarasagarasya Kulodbhavam॥24॥
Idam Stotram Pathitva Tu Mahastotram Pathennarah।
Sa Tu Saptashatisankhyavaramapnoti Sampadam॥25॥
॥ Iti Devya Argalastotram Sampurnam ॥
reference @www.drikpanchang.com
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अर्गाला स्तोत्रमचे फायदे काय आहेत?
असे मानले जाते की अर्गला स्तोत्रमचे पठण केल्याने, व्यक्ती सर्व कार्यांमध्ये यश मिळवू शकते आणि आव्हानांवर मात करू शकते . देवी कबच एखाद्या व्यक्तीभोवती संरक्षणात्मक कवच तयार करते. यासोबत अर्गाला स्ट्रोट्रमचे पठण केल्याने एखाद्याला आव्हाने दूर ठेवण्यास आणि विजय मिळविण्यात मदत होईल.
argala stotram benefits in hindi
विजय की प्राप्ति इस अर्गला स्तोत्र के पाठ से समस्त कार्यों में विजय प्राप्त होती है। यह स्त्रोत्र रुप, जय और यश देने वाला है। इसका पाठ करने से आपके चारों और सुरक्षा घेरा तैयार हो जाता है।
argala stotram benefits
अर्गला स्तोत्र के कई फ़ायदे हैं, जिनमें से कुछ ये रहे:
इससे विजय मिलती है
इससे कष्ट दूर होते हैं
इससे सारी बाधाएं दूर होती हैं
इससे किसी भी कार्य की सिद्धि होती है
इससे समस्त कार्यों में विजयश्री मिलती है
इससे रूप, जय, और यश मिलता है
इससे जीवन में ढेर सारा धन, सफलता और प्रचुरता आती है
यह स्तोत्र आपकी नौकरी या व्यवसाय को आगे बढ़ाने में मदद कर सकता है
देवी अर्गला स्तोत्रम दिमाग को तेज करने के साथ शरीर को स्वस्थ रखता है
इससे मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सफलता के योग बनते हैं
What is argala in astrology?
The word argala means Intervention. So in vedic astrology argala means planetary intervention. Planets give subhargala (benefic intervention), virodhargala & papargala (negative intervention). Each house influences the 2nd,4th and 11th house from it.
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